तांत्रिक या उच्छिष्ट गणेश और उच्छिष्ट चांडालनी रहस्य अघोर द्वारा :Anmol rajsimha bihariya
तांत्रिक गणेश या उच्छिष्ट गणपति और उच्छिष्ट चांडालनी का रहस्य एक अघोर द्वारा : गणपति शुभता, स्वतन्त्रता, अच्छे गुण बुद्धि के देवता, जिन गणपति की आराधना मे काले और नीले कपड़े पहनना वर्जित है, मगर मैं ऐसा कहु की एक रूप ऐसा भी है जिसका रंग ही काला हो, और गणपति की ऊर्जा का उपयोग तांत्रिक क्रियाओं मे होता हो, कई लोग नहीं जानते है ना मैं भी नहीं जानता था, जब तक वो सब ना हुआ, और वो काले गणपति की मूर्ति कुछ वर्षो तक मेरे पास भी रही जब तक उसकी ऊर्जा स्वतंत्र ना हुई और मैंने उनका विसर्जन ना कर दिया, मेरे पहचान के लोगों ने जरूर देखी है पहले मेरे पास काले गणपति की मूर्ति, शाम का समय और रविवार का दिन और लगातार छुट्टी कोई काम नहीं था, मैंने ब्लॉग चेक करने का सोचा इसलिए अपना email login किया, तभी inbox मे मेरी नजर एक परिचित के मेल पर पडी, लिखा था I need help, एक बार फिर से करते है, अगर इस बार यज्ञ खराब करोगे गुस्सा नहीं होऊँगा जैसे यक्षिणी के समय हुआ था, no. नहीं था ब्लॉग से email लेकर कर रहा हू जल्दी ही जवाब दोगे ऐसे आशा है, मैंने अपना फोन उठाया और तुरंत नंबर पर कॉल किया, मैंने कहा सर कैसे है, उधर से आवाज आयी ठीक हू my boy कल गाड़ी भेजता हू आ जाओ कुछ बात करना है, घूम भी लो, मैंने हसते हुए कहा हाँ घूम ही लेता हू, दूसरे दिन मैं उनके सामने बैठा था मैंने कहा कहे paranormal एक्सपर्ट जी डॉ सहाब हमे कैसे बुलाया इतने मे एक अधेड़ कुर्ता पैजामा पहने अंदर आया और मुझे और प्रो सहाब को हाथ जोड़कर चुपचाप बैठ गया, मैंने प्रो. को देखा उन्होंने कहा ये मेरे मित्र है इनके बड़े भाई किसी तांत्रिक के झोल मैं है, उनकी बेटी तो पागलपन के दौरे आने लगे है, रह रह कर दौरे आते है और इनके भाई सहाब मानते नहीं है, बार बार पैसे लेकर उसी के पास पहुच जाते है, मैंने उन्हें देखा और कहा अरे ये इसमे मैं क्या कर सकता हू मैं तो खुद नहीं समझ पाता ये सब, प्रो बोले नहीं समझे नहीं बस थोड़ा ड्रामा करना है उसे झूठा साबित नहीं कर सकते छोटा तो कर सकते है, विभूति के बहाने बच्ची को पता नहीं क्या खिला रहा है, आज पूजा यज्ञ के समान के साथ बकरा और काफी पैसे लाने कहा है, मैंने गुस्से में देखा अरे साले को पीट क्यू नहीं देते, वो व्यक्ति बोले भईया आप सोचो मेरे भईया भाभी पागला से गए है, आप लोग ही बताये अगर हमे डर भी लगता है, अगर सच मे कुछ हुआ तो, मैं मना ही करने वाला था इतने मे उन्होने उस बच्ची की फोटो दिखा दी, मैंने उनको कहा कुछ समान चाहिए और वो समान उनकी पूजा के समान के साथ रख देना, आज देख ही लेते है श्मशान नरेश को, समान क्या मैने कहा एक लाल स्याही दवात, एक दो injection, सोडियम पाउडर, और दो तीन आदमी, प्रो बोले अबे आदमी क्यू मैंने बोला अरे protection भईया हंस दिया मेने, मैं बाहर गया बाहर पार्क था कुछ देर बैठा सोचा और वापस आया जब तक समान आ गया था, मैंने injection से ink लाल colour की नारियल के अंदर डालना शुरू किया और नींबु के अंदर भी injection से दबा कर उसका रस निकाल कर इंक डालकर मोम से छेद बंद कर दिया, और सोडियम बंद स्थिती मे रख लिया, रात घिर आयी थी पूजा का समान जा चुका था पूरा परिवार श्मशान की और जा चुका था, हम लोग भी पहुचे और दूर से देखने लगे बलि के लिए लाया बकरा एक और रुदन कर रहा था, और बच्ची को टीका लगा कर उनके बाप माँ के साथ बदहवास स्थिति मे देखा, एक काले गणपति की प्रतिमा और कुछ जायफल उन्होंने स्थित रखे थे, किसी विशेष मुहूर्त के कारण कुछ कुछ दूरी पर और भी अघोर लोग या तांत्रिक लोग मौजूद थे, मैं आँख बंद की और सोचा ठीक है हो जाएगा, हम आगे बढ़कर जैसे पास पहुचे वो तांत्रिक चिल्लाने लगा ये लोग कौन है यहां कैसे हटाओ माना किया था ना बाहर का कोई नहीं चाइये, इतने मे बच्ची के चाचा बोल उठे अच्छा और जो आप ये बकवास फैलते है हमे लूट रहे उसका क्या, उनके बड़े भाई चीख पडे हम कर रहे है ना निवारण आज रात आखिरी था, इतने मे तांत्रिक चिल्लाया अरे भागों यहां से वर्ना एक फुक मरूंगा भस्म हो जाओगे, अब मेरा संतुलन बस खोने को था, मैंने कहा मुझे भस्म करेगा, तुरंत मैंने पास पडे पानी टाके से पानी हाथ मे लिया और कुछ पढ़ने का नाटक किया और उसके यज्ञ वेदी मे फेंका तो तुरंत आग जल उठी, ये देख कर उसके साथी भाग गए और एक दम कोलाहल मच गया, वो तांत्रिक भी धीरे से खिसकता दिखा, फिर उनके बड़े भईया भी आश्चर्य मे पास मे आ गए और प्रणाम किए, मेरी हसी निकल जाती मगर नाटक जारी रखना था, आग सोडियम और पानी का कमाल था, इतने मे बच्ची के चाचा कहे भईया ये अपनी बच्ची पर काला जादू कर्ता था, उन्हें भी पता था ढोंगी था मगर उनका विश्वास इतना अधिक हो गया था उसे ऐसे ही तोड़ सकते थे, इतने मे वो तांत्रिक वापस आया बोला अच्छा अच्छा मैं काला जादू कर्ता हू, और ये पानी से आग लगा रहे ये क्या है, मैंने बोला अगर तुमने काला जादू किया है ना तो नींबु या नारियल प्रयोग करो अगर रक्त निकला तो तुमने किया है, इतने मे एक विशाल अघोरी दूर से हमे देखता दिखाई दिया, मैंने तुरंत नारियल उठा कर पटक दिया और नींबु को पैर से कुचल दिया अब वो गायब होने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था क्युकी नींबु और नारियल खून याने इंक उगल रहे थे, अब वो चाचा बच्ची और उनके माँ पापा को लेकर जाने ही वाले थे मैंने उन्हें जाने और घर मे बिना इलाज के नॉर्मल रहने का कहा वो गए थे कि इतने मे वो विशाल अघोरी मेरे सामने थे, खूब खेल खेला हाँ, हाहाहा करके वो हसने लगा, स्याही और खून मे अन्तर नहीं समझ पाया वो, ये ही सोच रहे हो ना काले गणपति क्यू मैंने हाँ मे सर हिला दिया, उन्होंने कहा काले गणपति इनका उपयोग उच्छिष्ट गणपति या तांत्रिक गणपति के रूप मे किया जाता है गणपति के विपरित ये अमंगलकारी होते है, और वो जायफल वो उच्छिष्ट चांडालनी कहलाती है मातंगी का प्रतिरूप, मैंने कहा आप मुझे बिना पूछे सब बता रहे है, उन्होंने कहा हाँ क्युकी ये सत्य है हम आज इनका प्रयोग करेंगे ताकि विश्व का भला हो, वो ढोंगी था सिर्फ ढोंग कर रहा था असली पूजा देखोगे मैंने हाँ कह दिया, उन्होंने उस बकरे को आजाद कर दिया, यह ही उच्छिष्ट विद्या है जिसका स्मरण महिषासुर वध के समय दुर्गा माता और अनेक देवताओ ने किया है, यह ही वह उच्छिष्ट विद्या है जिसके सहारे श्री कृष्ण एक चावल का दाना खाकर हजारो ऋषि मुनि का पेट भार दिए थे, और द्रौपदी को दुर्वासा के प्रकोप से बचाए थे, उच्छिष्ट विद्या मे भोजन आदि की कमी दूर करने और शत्रु अमंगल करने का विधान है, इतना कहकर उन्होंने वहां पड़े लड्डू उठा लिए खाने लगे और कहा खाओ मैंने पूछा पूजा से पहले आप खा रहे है और जगह भी झाड़ू नहीं की, उन्होंने कहा उच्छिष्ट का अर्थ झूठा ही होता है मुह झुठे रखकर ही ये साधना की जाती है और साफ़ सफाई आदि का इसमे महत्व नहीं, मैं ध्यान से उनकी पूजा देखने लगा मुझे नींद सी आ रही थी मेरा ध्यान पूरा काले गणपति पर था, मुझे शायद झपकी लगी या क्या एक उजाले के साथ मेने गणपति की आकृति मन मे उभरते देखा मगर सूंड के उपर उनका मुह था और दात नहीं थे और सूंड के उपर मुह मे वो लड्डू चबा रहे थे, और एक बाल खुले रूखे से एक दुबली सी नीली औरत उनके पीछे थी जो स्वयं शायद उच्छिष्ट चांडालनी माता थी, एक तीव्र आवाज के साथ मेरी तन्द्रा टूटी वो विशाल अघोरी हंस रहा था जय हो जय हो हाहाहा गणपति की जय हो, सुबह का 4 बज रहा था, वो उठ के अपनी विशाल तोंद को सम्भाले जाने लगे मैंने उनको रुकने कहा मगर उन्होंने कहा पैदल बहुत यात्रा करनी है, मैं अभी भी तन्द्रा मे आये उस रूप को भुला नहीं पाया था, मैं खुद वापस जाने लगा लेकिन मेरी नजर तुरंत गणपति पर पडी, वो ही विचार आया रख लेता हू जब इनकी ऊर्जा मुक्त होगी सिरा दूंगा मैंने तुरंत जयफल ढूंढना शुरू किया उनको भी रख लेता हू मगर वो नहीं मिले... गणपति मैं ले आया और उनके ऊर्जा मुक्त होते तक रखने के बाद उन्हें सिरा दिया, ईश्वर अच्छे बुरे नहीं होते वो मुक्त ऊर्जा है हम उन्हें हमेशा अपने फायदे के लिए उपयोग करते है, ऊर्जा का रूप विध्वंश भी कर सकता है और सृजन भी हमे सृजन की और ध्यान देना चाइये, गणपति शुभता के देवता है उनका शुभ रूप ही मंगल करेगा.. हमे वाम मार्ग का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए, समान्य जीवन मे अंधविश्वास और वाम मार्ग की आवश्यता नहीं, ओम गं गणपतये नम:..... 10 दिनों मे अपनी बुरी ऊर्जा से मुक्त हो... आगे और भी लिखूँगा मुझे फालो करे और update पाए, कुछ 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आपका
Anmol RajSimha Bihariya
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